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कबीर साहेब की जीवनी

सदगुरु कबीर प्राकट्य

जब-जब काल-निरंजन से जीवों को अत्यंत दुःख होने लगा, अर्थात निरंजन जीवों को अत्याधिक रूप से सताने-तडपाने लगे, तब-तब सत्यपुरुष ने  सद्गुरू कबीर साहेब ( ज्ञानीजी / सुकृतजी ) को पुकार लगाई और आज्ञा की,  कि तुम संसार में जाओ और सब जीवों को सत्यलोक का सन्देश सुनाओ और उन्हें सत्यनाम का नाम-ज्ञान सुनाकर, काल-जाल से मुक्त कराओ | सत्यपुरुष की आज्ञा सुनकर ज्ञानीजी / सुकृतजी,  तुरंत सत्यलोक से प्रस्थान कर चारों युग में अलग-अलग नाम से प्रकट हुए और भवसागर में आकर जीवों को चेताया |  सतयुग में उनका नाम सतसुकृत हुआ,  त्रेतायुग में मुनिद्रनाम, द्वापरयुग में करुणामय और कलयुग में कबीरसाहेब हुआ |

 सद्गुरू कबीर साहेब का परम प्राकट्य वि. स. १४५५, ज्येष्ठ सुदी पूर्णिमा, सोमवार के दिन, आकाश मंडल से, सत्यपुरुष का तेज, काशी (वाराणसी / बनारस - उ. प्र.) के लहरतारा तालाब में उतरा |  उस समय अँधेरा छाया हुआ था, बिजली चमक रही थी और वृष्टि हो रही थी | उस तेज से वह तालाब ज्योर्तिमय होकर जगमगाने लगा तथा सब दिशाएं जगमगाहट से पूर्ण हो गई | उस अदभुत दृश्य को वहां पर बैठे श्री अष्टानंदजी ने देखा और उन्होंने उसका समस्त विवरण अपने गुरु श्री रामानन्दजी को आकर सुनाया | फिर वो तेज, मनुष्य के बालक-रूप में परिवर्तित हो गया और जल के ऊपर खिले कमल पुष्पों पर हाथ-पावं फेकने लगा | वह बालक अलौकिक शोभा लिए अत्यंत सुन्दर दिखलाई देता था | यही बालक “कबीर” था |  

नीरू नाम का जुलाहा काशी में रहता था | उस दिन ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष एवं  बरसाईंत पूर्णिमा तिथि थी, वह अपनी पत्नी नीमा को गवना ला रहा था | उसी समय नीमा को जल पिने की इक्छा हुई | उनके मार्ग के समीप, लहरतारा तालाब था |  नीमा जल पिने के लिए उस तालाब पर गई और उसकी दृष्टि उल स्थान पर पड़ी, जहाँ कमल-पत्र पर वह  अलौकिक बालक कुतूहल कर रहा था | उसका मन प्रफुल्लित हो गया जैसे कोई कंगाल धन पा गया हो | नीमा ने दौड़कर उस बालक को उठा लिया और उसे लेकर अपने पति के पास आ गई एवं  पुत्र के भावना से ओतप्रोत होकर बालक का लालन पालन करने लगे | बालक कबीर ने अपने बाल्यकाल में वे लोकोत्तर चरित्र दिखाए जो कि, महापुरषों की बाल-लीला से स्वाभाव से ही चमका करते है |

सद्गुरू कबीर साहेब जिस समय लहरतारा में प्रकट हुए, उस समय भारतवर्ष की राजनैतिक, धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति चरमरा चुकी थी | मुसलमानों का राज्य था | हिन्दुओं पर बड़े-बड़े अत्याचार किये जा रहे थे |  तात्कालिक देहली (दिल्ली) के बादशाह सिकंदर लोदी राज्य कर रहा था | सयोंगवश बादशाह को जलन का रोग हुआ | उसका कोई वैद्य और हाकिम इलाज नहीं कर सका | जलन रोग से व्यथित बादशाह को किसी वयोवृद्ध ने कबीर साहेब के पास काशी जाने की सलाह दी | बाद���ाह सिकंदर लोदी अपने सिपहसालारों, सभासदों तथा मुल्ला-मौलवियों सहित बनारस गए | वहा सद्गुरुं कबीर साहेब ने केवल अपने आशीर्वाद मात्र से ही बादशाह का जलन रोग मिटा दिया | बादशाह ने प्रसन्न होकर साहेब का बड़ा सत्कार तथा ह्रदय से सम्मान किया  | इस सम्मान से शेख तकी जो बादशाह का धर्मगुरु था, बहुत अप्रसन्न एवं क्रुध्द हुआ | द्वेषाग्नि में जलते हुए शेख तकी की जिद्द पर, बादशाह ने ५२ बार , कबीर साहेब की परीक्षा ली | इसे ही “बावन कसनी” भी कहा जाता है | कमाल और कमाली को मृत से पुन: जीवित कर कबीर साहेब ने बहुत प्रसिद्धि पाई | सतगुरु कबीर साहेब का शरीर पंच-भौतिक नहीं था | माया रचित अलौकिक दिव्य शरीरधारी, महासिद्ध योगी तपस्वी सतगुरु कबीर साहेब एक अद्वितीय महापुरुष हुए | इसीलिए उनको न कोई विद्वत्ता से, न कोई योग सिद्धि से और न ही कोई  शक्ति के द्वारा पराजित कर सका | 

​                                                 पांच तत्व से है नहीं, स्वासा नहीं शरीर |
                                           अन्न आहार करता नहीं, ताका नाम “कबीर” ||
​उनके सर्व धर्म विषयक युक्तियों ने अच्छा उच्च स्थान पाया | उन्होंने सांप्रदायिक द्वेष मिटाने की सदा चेष्टा की | उनके सर्व श्रेष्ठ शिष्य श्री धनीधर्मदासजी थे, जिनके वंशज आज भी “कबीर-पंथ” की गुरुवाई कर रहे हैं |  
वि. स. १५७५ की माघ सुदी एकादशी को मगहर (संत कबीर नगर – गोरखपुर उ.प्र.) में सतगुरु कबीर साहेब अंतर्ध्यान हो गए | उनके शरीर के स्थान पर पुष्प एवं चादर मिले, जिसे हिन्दू व मुस्लिम अनुयायियों ने बांटकर समाधी एवं मजार बनाई, जो आज भी विद्यमान है | संपूर्ण विश्व में ऐसा एक मात्र आश्चर्य है कि एक ही महापुरुष की समाधी भी है और मजार भी |
                                                   || सत्यनाम ||

​​                    सत्यसुकृत, आदि अदली, अजर, अचिंत, पुरुष, मुनीन्द्र,
                   करुणामय कबीर, सुरतीयोग सन्तायन धनी धर्मदाससाहेब की दया, 
                     वचन वंश पंथ श्री चूरामणिनाम, श्री सुदर्शननाम, श्री कुलपतिनाम,
                                   श्री प्रमोद गुरु बलापिरनाम साहब की दया,
                               चार गुरु वंश ब्यालिश की दया, 
                               सर्व संत- महंतो की दया | 
                                       || साहेब बंदगी  ||









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