जय जय सत्य कबीर |
सत्यनाम सत सुकृत; सत रत सत कामी |
विगत कलेश सत धामी, त्रिभुवन पति स्वामी ||टेक ||
जयति जय कव्विरम्, नाशक भव भिरम् |
धरयो मनुज शरीरम्, शिशु वर सरतीरम् || जय २||
कमल पत्र पर शोभित, शोभाजित कैसे |
नीलांचल पर राजित, मुक्तामणि जैसे || जय २||
परम मनोहर रूपम्, प्रमुदित सुखरासी |
अति अभिनव अविनाशी, काशी पुर वासी || जय २||
हंस उबारन कारन, प्रगटे तन धारी |
पारख रूप विहारी, अविचल अधिकारी || जय २||
साहेब कबीर की आरति, अगनित अघहारी |
धर्मंदास बलिहारी, मुद मंगल कारी || जय २||
जय जय श्री गुरुदेव |
पारख रूप कृपालं, मुदमय त्रैकालम् |
मानस साधु मरालम्, नाशक भव जालम् || जय २||
कुंद इंदु वर सुन्दर, संतन हितकारी |
शांताकार शरीरम्, श्वेताम्बर धारी || जय २||
शुभ्र मुकुट चक्रांकित, मस्तक पर सोहै |
विमल तिलक युत भृकुटी, लखी मुनिमन मोहै || जय २||
हीरामणि मुक्तादिक, भूषित उर देशम् |
पद्मासन सिंहासन, स्थित मंगल वेषम् || जय २||
तरुण अरुण कज्जांघ्री, त्रिभुवन वश करि |
तम अज्ञान प्रहारी, नख धूति अति भारी || जय २||
सत्य कबीर की आरती, जो कोई गावै |
मुक्ति पदारथ पावै, भव में नहीं आवै || जय २||
मंगल रूप आरती साजे |
अभय निशान ज्ञान धुन गाजे || टेक ||
अछय विरछ जाकी अंमर छाया | प्रेम प्रताप अमृत फल पाया ||
निशि वासर जहाँ पूरण चंदा | परम पुरूष तहं करत अनंदा ||
तन मन धन जिन अर्पण कीन्हा | परम पुरुष परमातम चिन्हा||
जरा मरण की संशय मेटो | सुरति सन्तायन सतगुरू भेटो ||
कहें कबीर हिरम्बर होई | निरखि नाम निज चिन्हे सोई||
संझा आरती
संझा आरती करो बिचारी | काल दूत जम रहे झखमारी ||
खुलगइ सुषमन कुंचीतारा | अनहद शब्द उठे झनकारा ||
सूरत निरत दोय उल टिस मावै | मकर तार जिहिं डोर लगावै ||
उन मुन शब्द अगम घर होई | अचाह कँवल में रहे समोई ||
वीगसित कमल होय परगासा | आरती गावै कबीर धर्मदासा ||
संझा आरती
संझाआरति सुकृति संजोई | चरण कमल चित राखु समोई ||
तिर गुण तेल तत्व की बाती | ज्योति प्रकाश भरे दिनराती ||
शुन्य शिखर पर झाझर बाजे | महापुरुष घर राज बिराजे ||
शब्द स्वरूपी आप विराजे | दर्शन होत सकल भ्रम भाजे ||
प्रेम प्रीति कै सेवा लावै | गुरुगम हो परम पद पावै ||
सुख अनंद है आरति गावै | कहें कबीर सतलोक सिधावै ||
रहना नहीं देश विराना है....
यह संसार कागद की पुड़िया, बूंद पड़े घुल जाना है | रहना नहीं देश विराना है....
यह संसार काँटों की बाड़ी, उलझ उलझ मर जाना है | रहना नहीं देश विराना है....
यह संसार झाड़ और झांकर, आग लगी बरी जाना है | रहना नहीं देश विराना है....
कहत कबीर सुनो भाई साधु, सतगुरू नाम ठिकाना है |
मन लागो मेरो यार फकीरी में...
मन लागो मेरो यार फकीरी में || टेक ||
जो सुख पायो नाम भजन में, सो सुख नहीं अमीरी में|भला-बुरा सबकी सुन लीजे, कर गुजरान गरीबी में|मन लागो...प्रेम नगर में रहनि हमारी, भली बनी आई सबुरी में|हाथ में कुण्डी, बगल में सोटा, चारों दिशा जागीरी में|आखिर तन ये खाक मिलेगा, कहा फिरत मगरुरी में|मन लागो...कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब मिले सबुरी में|मन लागो..
घूँघट के पट खोल रे, तोहे पिया मिलेंगे |
घट-घट रमता राम रमैया, कटुक वचन मत बोल रे | तोहे पिया...
रंग महल में दीप बरत है, आसन से मत डोल रे | तोहे पिया...
कहत कबीर सुनो भाई साधु, अनहद बाजत ढोल रे | घूँघट...
रमैनी - सात गुरु की ||
गुरु गुरु कहत सकल संसारा | गुरु सोई जिन तत्व विचारा ||१||प्रथम गुरु है माता पिता | रज विरज के जो हैं दाता ||२||
दुसर गुरु है मनसा दाई | गर्भवास को बंध छुड़ाई ||३||
तीसर गुरु जिन धरिया नामा | ले ले नाम पुकारे गामा ||४||
चौथे गुरु जिन दीक्छा दिन्हां | जग व्यवहार रीति सब किन्हां ||५||पांचे गुरु जिन वैष्णव कीन्हा | रामनाम को सुमिरण दीन्हा ||६||
छठे गुरु जिन भ्रम गढ तो���़ा | दुविधा मेटी एक सों जोड़ा ||७||सातम गुरु सत शब्द लखाया | जहाँ का तत ले तहां समाया ||८||
साखी : सात गुरु संसार में, सेवक सब संसार |
सतगुरू सोई जानिये, भव जल तारे पार ||
रमैनी - गुरु की ||
गुरु सम दाता कोई नहिं भाई | मुक्ति मार्ग दियो बताई ||
गुरु बिन हिरदय ज्ञान न आवे | ज्यों कस्तूरी मिरग भुलावे ||
गुरु बिन मिटै न अपनों आपा | भरम जेवरी बांध्यो साँपा ||
गरु बिन केहरी कूपहिं पडिया | गुरु बिन गज छायहिं लडिया ||
गुरु बिन स्वान देखि बहु भेखा | मंदिर एक कांच को देखा ||
चहूँ दिसि दिखै अपनी छाया | भूंकत भूंकत प्राण गंवाया ||
गुरु बिन मुवा नलनी सो बांधा | गुरु बिन कपि पडो सो फन्दा ||
कहैं कबीर भरम्यो संसारा | गुरु बिन सतगुरू किम उतरै पारा ||
साखी :
भरम जेवरी गज बांध्यो, फिर जन्मे मर जाय |
कहैं कबीर सतगुरू मिले, ता सतलोक सीधाय ||
सतगुरू बोलै अमृत वाणी | गुरु बिन मुक्ति नहीं रे प्राणी ||
गुरु है आदि अंत के दाता | गुरु है मुक्ति पदारथ भ्राता ||
गुरु गंगा काशी अस्थाना | चारी वेद गुरु गमते जाना ||
गुरु है सुर सरि निर्मल धारा | बिनु गुरु घटना हो उजियारा ||
अडसठ तीरथ भ्रमी भ्रमी आवे | गुरु की दया घर बैठहिं पावे ||
गुरु कहे सोई पुन करिए | मातु पिता दोउ कुल तरिये ||
गुरु पारस पर से नर लोई | लोह ते कंचन होय सोई ||
शुक देव गुरु जनक बिदेही | वो भी गुरु के परम सनेही ||
नारद गुरु प्रल्हाद पठाए | भक्ति हेतु जिन दर्शन पाए ||
काग भुसुंड शम्भू गुरु कीन्हा | अगम निगम सब हि कही दीन्हा ||
ब्रह्मा गुरु अग्नि को कीन्हा | होम यज्ञ जिन आज्ञा दीन्हा ||
वशिष्ठ गुरु किया रघुनाथा | पाई दरस तब भये सनाथा ||
कृष्णा गए तब दुर्वासा शरना | पाई भक्ति तब तरन तरना ||
नारद दीक्छा धीमर सो पायो | चौरासी सो तुरंत छुडायो ||
गुरु कहै सोई है सांचा | बिनु परिचय सेवक है कांचा ||
कहै कबीर गुरु आपु अकेला | दश औतार गुरु का चेला ||
साखी :
राम कृष्ण ते को बड़ा, उनहू तो गुरु किन |
तीन लोक के वे धनी, गुरु के आगे आधीन ||
रमैनी - गुरु महिमा ||
गुरु मिले तो सत्य लखावे | बिन गुरु अंत न कोई पाए ||
जिन गुरु की किन्ही परतीती | एक नाम कर भव जल जीत ||१||
गुरु प्रेम ते जीव मराला | गुरु स्नेह बिन काग कराला ||
गुरु दया शब्द हमारा | गुरु परगट, गुरु गुप्त अधारा||२||
गुरु पृथ्वी, गुरु पवन अकाशा | गुरु जल थल महँ कींन निवासा ||
चन्द सूर गुरु सब संसारा | गुरु बिन होय न कोई व्यवहारा ||३||
गुरु ब्रह्मा, विष्णु औ महेशा | गुरु भगवान कुर्म औ शेशा ||
चर-अचर जहाँ लगी सब देखा | गुरु बिन कछु और नहीं पेखा ||४||
उत्तम मध्यम और कनिष्ठा | ये सब कीन्हे गुरु बरिष्ठा ||
ये सब जीव गुरू मय जानो | गुरु से भिन्न और नहीं मानो ||५||
गुप्त प्रगट सब ही जग जाया | सबहीं में है सतगुरू की छाया ||
कहें कबीर सो हंस पियारा | यही भांति ते गुरु दरस निहारा ||६||
साखी :
सो गुरु निसदिन वंदिए, जासो पइये नाम |
नाम बिना घट अंध है, ज्यों दीपक बिन धाम ||
रमैनी - गुरु टेक की ||
जाको टेक एक गुरु दाता | ताको कछु और न सुहाता ||
पय जो बिगड़ा माखन होई | बिगड़े छांछ कहै नहिं कोई ||
पतिव्रता को लांछन होई | गणिका बिगडे कहत न कोई ||
सूरा भागा आप विगोई | कायर भागा कहै न कोई ||
नटनी नाचे आपा खोई | देखन हार पडै नहिं कोई ||
भुला मन को जो समुझावे | आदि अंत सोई संत कहावे ||
कहै कबीर हम एता कहिया | सांच माने सो नरकहिं गईया ||
साखी : डाल की चुकी बांदरी, शब्द का चूका हंस |
कहें कबीर धर्मदास सो, दोउ निरफल वंस ||
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