“सत्य”
सत्य के रहस्य को समझने के लिए निम्नाकित प्रकरण को समझना एवं मार्ग-दर्शन लेना आवश्यक है :
1. संसार
2. धर्म
3. जीव
4. कर्म और कर्ता
5. विवेक
6. सत्संग
7. मन-शक्ति इन्द्रियां
8. प्रेम
9. त्याग
10. संतोष सुख
11. अहिंसा
12. मृदु व्यवहार
13. समत्व ज्ञान
14. मार्ग दर्शन
15. सत्य
16. अमरत्व
17. सहज समाधी
18. साधना-शान्ति
19. देश सेवा भाव
20. आत्मज्ञान
21. परमात्मवाद
“सत्य”
जैसे का तैसा, सदा-‘सत्य’, जो बनता है, वह, नश्वर है,
जैसे, शब्दों, में व्यंजन है, व्यंजन में, व्याप्त, सदा स्वर है |
है वाक्य, शब्द से संयोजित, व्यंजन ने, स्वर से नियम लिया,
स्वर गुप्त रूप से व्यंजन में,-मिल, शब्द, वाक्य को, व्यक्त किया |
जो, रहकर भी हो स्पस्ट नहीं, पर, होता वह आधार वहीं,
साकार, कहीं, है निराकार, सब बिखर जाएँ, यदि, ‘सार’ नहीं |
यों, जो ‘सत् है’ जल, थल, नभ में, अस्तित्व गुप्त दे, नियमन है,
यह, बिना मार्ग-दर्शन, ‘रहस्य’, अनबूझ निरंकुश-जीवन है |...
“प्रेम”
चल प्रेम-राह, पा आत्म द्वार, जो गुरु मत भवन, प्रविष्ट किया,
औरों को सुख दे, शांत किया, निज अपने में, सत-युक्त जिया |
हो पवन प्रेम, अपावन से, पावन ही, भेद, नहीं रखता,
सम्पूर्ण विश्व, एवं निज में, यह ‘पावन प्रेम’, अमर बनता |
मति, स्वंय प्रकाशक,-‘महा-आत्म’, ‘सत्यार्थ-प्रेम’ ही निश्छल, है,
हो महाबली, ज्ञानी, ध्यानी, तज प्रेम, निराश्रित-निर्बल है |
‘सांसारिक-प्रेम’ भिखारी है, अन्यों से, प्रेम मांग करता,
हो, नहीं अपेछा, अन्य प्रेम, ‘जन-हित-स्वाभाव’, केवल रखता |
अन्योक्ति परे, है, ‘निरत-प्रेम’ इसकी पहिचान, हमें करना,
जीवन-स्वातंत्र्य, सुखद जीकर, फिर सुखद मृत्यु ले, भव तरना.....
“संसार”
सार रतन धन बांध ले, माटी है संसार,
कबीरा फीका जानकर, नेह तजा घर बार |
हो त्रस्त, ताप, दैहिक-भौतिक, या दैविक, ‘सोच’! ‘करे अब क्या’?
दिनचर्या घिसट बिताता, जब, कुछ को विरक्ति, दे जोश नया |
क्षण-क्षण कर, श्वास, ख़त्म पर है, तैयारी है, सब छोड़ चलें,
पछतावा छोड़, करें क्या कुछ, हिम्मत हो कहाँ! ‘स्वयं-मत’, लें |
जब, लपटें-आग, भवन घेरीं, तब, कुआँ खोदने को, कहना,
“जल खीच, बुझा दे अग्नि”, कहैं, है बचकानी, उपाय करना |
गुरु-मुख-वाणी, संस्कार बुद्धि,-दें सिख, पिता माँ, बचपन में,
‘सच बोले तौल’ करे, ‘सच’, ही, यह ज्ञान, प्रबल हो, यौवन में |
सत, शील, अहिंसा, दया, क्षमा, पक्के तत्वों से, सुरति सजी,
‘स्वज्ञान’, स्वरुप-विभूषित हो’-मय ‘सहज’, ‘सरलता’, चित उपजी |
हों सभी अवस्था, समानस्थ, ‘गम-ख़ुशी-अछुता’, तन मन हो,
हर श्वास, जाप-अजपा उसका, हर दृष्टि-मध्य, वह सज्जन हो |‘सांसारिक-जीवन-गति’, ‘विस्मृति’, कितनी बीती! कुछ याद नहीं,
हर श्वाँस खीचता, मृत्यु ओर, ह���क्षण, ना समझे, ग़लत, सहीं |
जो, ‘मूल्य’ जानता, श्वास- एक, वैभव-त्रिलोक से उत्तम है,
हो कर सचेत, निज को परखे, वह पूज्य महान, महत्तम है .......
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